Tuesday, June 2, 2009


इक ओंकार सैट नाम करता पुरख,
निर्भ-अ-ओ निर्वैर अकाल मूरत ,
अजूनी सैब्भं गुर परसाद जप।
आड़ सच जुगाड़ सच।
है भी सच नानक होसी भी सच।
सोची सोच ना होव-अ-ई जे
सोची लाख वार.
छुपी चुप ना होव-अ-ई जे ला-इ रहा लिव तार।
भूखी-आ भूख ना उतरी जे बन्ना पुरी-आ भार।
सहस सी-आन्पा लाख होह टा इक ना चलाई नाल.






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