Tuesday, January 24, 2012


रटी-रटाई प्रार्थना, सुना-सुनाया ज्ञान
बोर किया भगवान को, कैसे हो उत्थान ..
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन!

काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन।
बीती रात, अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन।
सुखमय हो सबका जीवन!

आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना।
मुस्काएगा यह जीवन।

कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन।
जल में ,थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन।
दमक उठा हर घर-आँगन।
जब तुमसे मिला मैं तो तुम खुशगवार झोंके सी लगी,
तुम्हारी वो भोली सी हंसी वो ख़ुशी भली लगी,
तुम साथ चली हमकदम बन साथ तुम्हारा भला लगा,
हाथो में हाथ तुम्हारा रुई के फोहे सा प्यारा लगा,
खुश था बहुत पाकर तुम्हे जैसे पा लिया सब जीवन में,
फिर अचानक तुम जाने क्यों हो गई खफा मुझसे,
अब तुम नाराज़ हो बिना बताये कि नाराज़गी की वजह क्या है,
तो आज तुम्हारी यह नाराज़गी यह निगाह के सवाल भी भले से लगे,
वजह मत पूछो की क्यों हर बात तुम्हारी लगती मुझे भली सी है,
शायद बता भी न सकू कि ऐसा क्यों है मुझे भी नहीं पता वजह क्या है,
हाँ तुम्हारी वजह पूछने की हर वजह भली सी लगी,
आज फिर तुम मुझे उसी खुशगवार झोंके सी लगी.........

Saturday, January 21, 2012



प्रीति कविता ज़िन्दगी की गर्विता रानी नही है
मूक भाषा प्रीति की, कुछ बोलती बानी नहीँ है
प्रीति कह सकते किसी उन्मुक्त सी उठती लहर को
बाँध लो जिसको तटोँ मे प्रीति वह पानी नही है। ...

शुभ संध्या मित्रो..................
ठोकरे खा के ही इंसा संभलता है,
और अपने वजूद में ढलता है,
जो गिरकर संभल न पाए वो इंसा ही क्या,
चीटी को भी गिर गिरके ही मुकाम मिलता है..

तुम्ही तो हो प्रिय मेरे जीवन के आधार स्तंभ,
हाँ तुम्ही हो जिसने दिया धड्कनो को स्पंदन,
तुम्ही हो मेरे इस जीवन के बिंदु आधार,
तुम्हारे ही प्यार में छिपा इस जीवन का सार,
आज देती हूँ शुभकामनाये जन्मदिन पर तुम्हारे,
तुम्हारे प्रेम के सागर में डूब के ही तो मिले किनारे,
जीवन पथ पर इसी तरह देना तुम मेरा साथ,
है परमेश्वर से दुआ यहीं छूटे कभी न हमारे हाथ,
जन्मदिन तुम्हारा हम कुछ ऐसे मनाये,
केक तुम काटो और मिल बांटकर हम खाए......

Friday, January 20, 2012


यह मनुष्य योनी हमे क्यों मिली है ?यह मनुष्य योनी मात्र सुख:दुःख भोगने के लिए नहीं मिली, अपितु सुख:दुःख से ऊँचा उठकर, माहन आनंद और परमशान्ति की प्राप्ति के लिए मिली है. सिर्फ सुख:दुःख की अनुभूति में ही उलझे रहे तो मुक्ति के पात्र कैसे होंगे?प्रतिकूल परिस्थिओं में सारा धर्य समाप्त हो जाता है.इस जीवन क्रम में यह सब तो चलता रहेगा. लेकिन स्थिर तुम्हारे मन को होना है. इसलिए अपने विवेक को जागृत करो. कर्म करो लेकिन भगवान को न भूलो. अज्ञान का अँधेरा तुम्हारे लिए नहीं है. भटकने की प्रवृति तुम्हारे लिए नहीं है. तुम्हारे भीतर रमण करती उस आत्मा से एक बार अपना परिचय पुछो. प्रश्न का उत्तर न मिले तो अपने गुरु के पास जाओ. तुम्हारा आत्मकल्याण होगा.याद रखो संसार को हम एक ही बार देख सकते हैं. दूसरी बार नहीं, क्योंकि संसार परिवर्तनशील है. जो वस्तु कुछ छन तक पहले जैसी थी, कुछ छान बाद वैसी नहीं रहेगी. बदलाव संसार का नियम है, इसलिए यंहा सम्बन्ध भी स्थिर नहीं रहते. वह भी बदल जाते हैं. इसलिए प्रीति करो तो उससे जो कभी नहीं बदलता. सदा-सर्वदा- सर्वत्र स्थिर रहता है और ऐसी परमशक्ति परमात्मा के अतिरिक्त अयन्त्र कंही भी नहीं है. वही एकमात्र सत्य है.परमात्मा को कितना ही अस्वीकार करे, कितनी ही उपेक्षा करे, युक्तिओं से कितना ही खंडन करे, फिर भी उसकी सत्ता का कभी आभाव नहीं होता. वह सैदेव विधमान रहती है, क्योंकि वही सत्य है. जबकि संसार में सर्वत्र असत्य ही है. इसलिए संसार में सैदेव आभाव रहा और परमात्मा में भाव ही रहा.

jindgi ka falsafaa hum, kyu samajh nahi paye..
kya hoti hai jindgi, koi hume bhi to samjhaye...
bhula bisra geet koi, ya dhun hai woh meera ki..
koi kahe allah ki nehmat, ya chaupai hai geeta ki...
na koi jana na koi samjha, yeh ek aisi paheli hai...
kabhi lage raavan si dushman, kabhi yeh sacchi saheli hai..

शुभ संध्या मित्रो..................
ठोकरे खा के ही इंसा संभलता है,
और अपने वजूद में ढलता है,
जो गिरकर संभल न पाए वो इंसा ही क्या,
चीटी को भी गिर गिरके ही मुकाम मिलता है....

रुके आँसू, दबी चीखें, बंधी मुट्ठी, भिंचे जबड़े
-इन्हीं के तर्जुमे से मुल्क़ में विस्फोट होता है
ये बम रखने का काम अच्छा-बुरा औरों की ख़ातिर है
ग़रीबी के लिए तो सिर्फ़ सौ का नोट होता है ...

‎"Successful People Can't Relax In Chairs…They Relax In Work. They Sleep With A Dream, Awake With Commitment & Work Towards GOAL..." ...

फैली खेतों में दूर तलक
मख़मल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।

रोमांचित-सी लगती वसुधा
आयी जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध,

फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली।
रँग रँग के फूलों में रिलमिल

Thursday, January 19, 2012


चिराग थे महफ़िलें थीं दोस्त हज़ार थे
खवाब थे बेखुदी थी जाम थे खुमार थे
अपने ही घर में अजनबी हैं हम के जो
कभी शहर में रौनक के अलमबरदार थे ...

कुछ तो आगे इस गली के मोड़ पर आने को है
डर न, ऐ दिल! आज कोई हमसफ़र आने को है

फिर उतरने लग गयीं यादों की वे परछाइयाँ
दिल का सोया दर्द जैसे फिर उभर आने को है

फ़िक्र क्या तुझको कहाँ तक जाएगा यह कारवाँ
बाँध ले बिस्तर, मुसाफिर! तेरा घर आने को है

यह तो बतलाओ कि पहचानेंगे कैसे हम तुम्हें
लौट कर यह कारवाँ फिर भी अगर आने को है!

यह किनारा फिर कहाँ, ये साँझ, ये रंगीनियाँ
नाव यह माना कि फिर इस घाट पर आने को है

जब निगाहें मोड़कर जाते हैं दुनिया से गुलाब
कोई लाया है ख़बर, - 'वह बेख़बर आने को है'

हर लम्हा ज़िंदगी का एक कोरा सफहा है,
कूची ख्वाहिशों की लेकर तुम इसमें रंग भर लो ।

लेकर सुबह से सिंदूरी लाल,
आकृति नये जीवन की बनाना ।
फिर ले प्रणयी बासंती पीला,
नित नये तुम स्वप्न सजाना ।

मेहंदी से लेकर हरा रंग,
अपना सुंदर संसार रचाना ।
और ले विराट अम्बर से उसका रंग,
स्वयं को उसके साथ उठाना ।

फिर शुभ्र एक किनारी देकर,
नई उमंग की ज्योत जगाना ।
देना श्याम छोड़ निशा पर,
उसे है केवल हमें निभाना ।

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।