Friday, January 20, 2012


यह मनुष्य योनी हमे क्यों मिली है ?यह मनुष्य योनी मात्र सुख:दुःख भोगने के लिए नहीं मिली, अपितु सुख:दुःख से ऊँचा उठकर, माहन आनंद और परमशान्ति की प्राप्ति के लिए मिली है. सिर्फ सुख:दुःख की अनुभूति में ही उलझे रहे तो मुक्ति के पात्र कैसे होंगे?प्रतिकूल परिस्थिओं में सारा धर्य समाप्त हो जाता है.इस जीवन क्रम में यह सब तो चलता रहेगा. लेकिन स्थिर तुम्हारे मन को होना है. इसलिए अपने विवेक को जागृत करो. कर्म करो लेकिन भगवान को न भूलो. अज्ञान का अँधेरा तुम्हारे लिए नहीं है. भटकने की प्रवृति तुम्हारे लिए नहीं है. तुम्हारे भीतर रमण करती उस आत्मा से एक बार अपना परिचय पुछो. प्रश्न का उत्तर न मिले तो अपने गुरु के पास जाओ. तुम्हारा आत्मकल्याण होगा.याद रखो संसार को हम एक ही बार देख सकते हैं. दूसरी बार नहीं, क्योंकि संसार परिवर्तनशील है. जो वस्तु कुछ छन तक पहले जैसी थी, कुछ छान बाद वैसी नहीं रहेगी. बदलाव संसार का नियम है, इसलिए यंहा सम्बन्ध भी स्थिर नहीं रहते. वह भी बदल जाते हैं. इसलिए प्रीति करो तो उससे जो कभी नहीं बदलता. सदा-सर्वदा- सर्वत्र स्थिर रहता है और ऐसी परमशक्ति परमात्मा के अतिरिक्त अयन्त्र कंही भी नहीं है. वही एकमात्र सत्य है.परमात्मा को कितना ही अस्वीकार करे, कितनी ही उपेक्षा करे, युक्तिओं से कितना ही खंडन करे, फिर भी उसकी सत्ता का कभी आभाव नहीं होता. वह सैदेव विधमान रहती है, क्योंकि वही सत्य है. जबकि संसार में सर्वत्र असत्य ही है. इसलिए संसार में सैदेव आभाव रहा और परमात्मा में भाव ही रहा.

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