जब तुमसे मिला मैं तो तुम खुशगवार झोंके सी लगी,
तुम्हारी वो भोली सी हंसी वो ख़ुशी भली लगी,
तुम साथ चली हमकदम बन साथ तुम्हारा भला लगा,
हाथो में हाथ तुम्हारा रुई के फोहे सा प्यारा लगा,
खुश था बहुत पाकर तुम्हे जैसे पा लिया सब जीवन में,
फिर अचानक तुम जाने क्यों हो गई खफा मुझसे,
अब तुम नाराज़ हो बिना बताये कि नाराज़गी की वजह क्या है,
तो आज तुम्हारी यह नाराज़गी यह निगाह के सवाल भी भले से लगे,
वजह मत पूछो की क्यों हर बात तुम्हारी लगती मुझे भली सी है,
शायद बता भी न सकू कि ऐसा क्यों है मुझे भी नहीं पता वजह क्या है,
हाँ तुम्हारी वजह पूछने की हर वजह भली सी लगी,
आज फिर तुम मुझे उसी खुशगवार झोंके सी लगी.........
Tuesday, January 24, 2012
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