Friday, December 23, 2011
सुबह की पहली किरण ने पूछा-
तुम कौन हो?
मैंने कहा, मैं भोर हूँ,
मैं आशा हूँ,
नव जीवन की अभिलाषा हूँ|
सुबह की पहली किरण ने पूछा-
और क्या हो?
मैंने कहा, मैं कुसुम हूँ,
मैं खुशबू हूँ,
मुरझाए कल की कली हूँ,
जो आज फूल बन कर खिली हूँ|
सुबह की पहली किरण ने पूछा-
और क्या हो?
मैंने कहा, नई नवेली दुल्हन हूँ-
प्रेयसी भी हूँ,
प्रेम के गीत गाती हूँ|
सुबह की पहली किरण ने कुछ ना पूछा-
बस कहा- चल तुम और मैं सखी बन
प्यार की, अनुराग की रौशनी फैलाएँ
और नव-जीवन का गीत गाएँ .....
रात चले, तू जले ऐ ज़िन्दगी तेरा क्या है
आई है तो जाएगी, ऐ ख़ुशी तेरा क्या है
मै बाशिंदा उस शहर का, जिसे वक़्त नहीं
सफहों में दबी रह जा, शायरी तेरा क्या है
आज उजाला है तो, कल अँधेरा भी होगा
पखवारे-पखवारे आए चाँदनी तेरा क्या है
जोड़ लूँ ख़ुशी के लम्हे आया बहुत दिन बाद
तू भी कल को चल देगा अजनबी तेरा क्या है
धुआँ उठा है तो कुछ जला भी होगा
ठहर जा बारिश तू भी आई गई तेरा क्या है
ओस की बूँदें पड़ीं तो पत्तियाँ खुश हो गई
फूल कुछ ऐसे खिले कि टहनियाँ खुश हो गई
बेखुदी में दिन तेरे आने के यूँही गिन लिये
अक पल को यूँ लगा कि उँगलियाँ खुश हो गई
देखकर उसकी उदासी, अनमनी थीं वादियाँ
खिलखिलाकर वो हँसा तो वादियाँ खुश हो गई
आँसुओं में भीगे मेरे शब्द जैसे हँस पड़े
तुमने होठों से छुआ तो चिटठियाँ खुश हो गई
साहिलों पर दूर तक चुपचाप बिखरी थीं जहाँ
छोटे बच्चों ने चुनी तो सीपीयाँ खुश हो गई
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