Friday, December 23, 2011
ओस की बूँदें पड़ीं तो पत्तियाँ खुश हो गई
फूल कुछ ऐसे खिले कि टहनियाँ खुश हो गई
बेखुदी में दिन तेरे आने के यूँही गिन लिये
अक पल को यूँ लगा कि उँगलियाँ खुश हो गई
देखकर उसकी उदासी, अनमनी थीं वादियाँ
खिलखिलाकर वो हँसा तो वादियाँ खुश हो गई
आँसुओं में भीगे मेरे शब्द जैसे हँस पड़े
तुमने होठों से छुआ तो चिटठियाँ खुश हो गई
साहिलों पर दूर तक चुपचाप बिखरी थीं जहाँ
छोटे बच्चों ने चुनी तो सीपीयाँ खुश हो गई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment