इस चालाक दुनिया में
''माँ'' के लिए
सिर्फ एक दिन !
बाकी के
तीन सौ चौसठ दिन
माँ कहाँ है ??!!
दूसरों के वहां
झाड़ू-पोंछा-बर्तन
करती हुयी!,
बाप की बोतल के लिए
पैसा जुटाती हुयी !,
गोद में बच्चा
ओर
सर पर
तगारी उठाये हुए
दो वक़्त की रोटी का
जुगाड़ करती हुयी !,
पति से सताई हई......,
बेटों से तिरस्कृत.......,
बहुओं से डरी हुयी......,
शहर से दूर
किसी गाँव में
अपनी जिंदगी के दिन
अभावो,
तन्हाईयों,
में
अपने परिवार के लिए
दुआएं करती
काटती हुयी..''माँ''......!!!
"" ए माँ
इस चालाक दुनिया का
आज के दिन
तुझे सलाम ""-----
Monday, March 5, 2012
''क्या कभी लौटा है गुजरा हुआ पल ... ना कभी लौटा है वो खोया हुआ प्यार .. बस अहसास होते साथ है हमेशा .. क्योकि वो कभी हमसे दूर जाते ही नहीं .. हा समय के साथ छुप जाते है कही दिल में.. पर रहते हरदम हमारे ही साथ है ....... वक्त का एक लम्हा अचानक छेड़ जाता .. और सोये हुए जज्बात जाग जाते है अक्सर . फिर वही बदल जाते तड़फ में और निकलते आंसू है . पर ये जज्बात और अहसास ही तो हमारी पूंजी है ... सही है वक्त कभी लौट कर नहीं आता मेरे दोस्तों .. पर गुजरे वक्त की ये छाप कभी ना मिटी है.
Assalam o Alaikum wa Rahmatullahi wa Barakatuhoo...
Peace be unto you. It is a shortened form of the grand greeting: Assalamu alaikum wa rahmatullahi wa barakatuh (Peace be unto you and so may the mercy of Allah and His blessings). The greeting is recommended to be only used between Muslims.
In reply to this a person may repeat the greeting and say: Assalamu Alaikum; However, it is more fitting to reply: Wa Alaikum Assalam.
و عليكم السلام
When a Muslim is greeted with the word 'salam' or its variants, they should reply Wa Alaikum as-Salam - And upon you be peace.
Peace be unto you. It is a shortened form of the grand greeting: Assalamu alaikum wa rahmatullahi wa barakatuh (Peace be unto you and so may the mercy of Allah and His blessings). The greeting is recommended to be only used between Muslims.
In reply to this a person may repeat the greeting and say: Assalamu Alaikum; However, it is more fitting to reply: Wa Alaikum Assalam.
و عليكم السلام
When a Muslim is greeted with the word 'salam' or its variants, they should reply Wa Alaikum as-Salam - And upon you be peace.
प्राणियों के लिये निर्धनता सब से बड़ा कष्ट और पाप है! क्यूंकि निर्धन को न तो कोई आदर देता, न उसे बात करता और न उसका स्पर्श ही करता है! निर्धन मनुष्य शिव के ही तुल्य क्यूँ न हो, सबके स्वर तिस्कृत होता रहता है! "मुझे कुछ दीजिये" यह वाक्य मुंह से निकलते ही बुद्धि, श्री, लज्जा, शान्ति और कीर्ति --ये शारीर के पांच देवता तुरंत निकल कर चल देते हैं! गुण आर गौरव तभी तक टिके रहते हैनं, जबतक मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाता! जब पुरुष वाचक बन गया, तब कहाँ गुण और कहाँ गौरव ! जीव तभी तक सब से उत्तम, समस्त गुणोंका भण्डार और सब लोगों का वन्दनीय रहता है, जबतक वह दूसरों से याचना नहीं करता!
होली है !
मादकता उल्लास भी ।
रंग हैं सारे...
हास-परिहास भी ।
मिल जुल सब
ख़ुशी में, बह जाते ।
भिन्न भिन्न हैं रंग लगाते।
लाल रंग उल्लास का ...
हरा और पीला
हास परिहास का ।
नीला और गुलाबी
प्रेम सौहार्द का ।
होती है मादकता उल्लास भी ।
शोर भी ,धमाल भी ...
रंग सारे खिलते हैं ।
भेद भाव भूल के ।
होली है !
मादकता उल्लास भी ।।
मादकता उल्लास भी ।
रंग हैं सारे...
हास-परिहास भी ।
मिल जुल सब
ख़ुशी में, बह जाते ।
भिन्न भिन्न हैं रंग लगाते।
लाल रंग उल्लास का ...
हरा और पीला
हास परिहास का ।
नीला और गुलाबी
प्रेम सौहार्द का ।
होती है मादकता उल्लास भी ।
शोर भी ,धमाल भी ...
रंग सारे खिलते हैं ।
भेद भाव भूल के ।
होली है !
मादकता उल्लास भी ।।
''क्या पता किस गुनाह की सजा मिलती है दीवानों को .. बस गुनाहगार है हम यही साबित हुए है हमेशा से वे , वफ़ा का सिला है ये या है ये उनके इमान का .. बस ये उनके नसीब का एक तोहफा सा है .. यदि ऐसा भी है तो हमें कोई गम नहीं .. इससे किसी को ख़ुशी मिली ये कोई कम तो नहीं . हर कोई कोई तौलता है उसे अपने तराजू में . दीवानों का होता नहीं अपना कोई मन नहीं .... उसे तो बस सहना है और जीना है किसी के लिए .. उसके जज्बातों का सच में कोई मोल नहीं ..
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