Monday, March 5, 2012
''क्या पता किस गुनाह की सजा मिलती है दीवानों को .. बस गुनाहगार है हम यही साबित हुए है हमेशा से वे , वफ़ा का सिला है ये या है ये उनके इमान का .. बस ये उनके नसीब का एक तोहफा सा है .. यदि ऐसा भी है तो हमें कोई गम नहीं .. इससे किसी को ख़ुशी मिली ये कोई कम तो नहीं . हर कोई कोई तौलता है उसे अपने तराजू में . दीवानों का होता नहीं अपना कोई मन नहीं .... उसे तो बस सहना है और जीना है किसी के लिए .. उसके जज्बातों का सच में कोई मोल नहीं ..
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