Monday, February 27, 2012

सागर की अपनी क्षमता है
पर माझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो
नाविक निज पतवार-

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