कभी आपने ,कभी खुद मैंने इसे बहलाना चाहा
अजीब शय है असलियत में कभी बहल न पाया
न जाने कौन सी मिट्टी से बना है हमारा ये 'दिल'
लाल,पीला,कत्थई,सुरमई हर रंग से इसे बेमेल ही पाया
पल भर को लगा सुकून मिला है इसे
अगले पल बेचैन ही पाया मैंने ये 'दिल' ....
Wednesday, February 22, 2012
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