Thursday, July 19, 2012

माँ हिमालय की तरह उची है पर हिमालय की तरह कठोर नहीं ,माँ सागर की तरह गहरी है पर सागर की तरह खरी नहीं ,माँ वायु की तरह गतिशील है पर वायु की तरह अद्रश्य नहीं ,माँ परमेश्वर की तरह महाँन है पर परमेश्वर की तरह दुर्लभ नहीं ....... माँ की कोई उपमा माहि हो सकती ख्योकी माँ कभी उप... माँ नहीं होती ........माँ तो बस माँ होती है .

Sunday, April 1, 2012

समस्त मूर्खाधिपतियों को नमन............क्योंकि आज आपका दिन यानी 1 अप्रैल अर्थात "फूल्स डे" है........यही एक त्यौहार है पूरे साल में जो आपके लिए रखा गया है........और पूरी दुनिया में धूमधाम से न सिर्फ मनाया जाता है बल्कि बिरादरी का विस्तार भी किया जाता है......ताकि आपकी ढेंचू - ढेंचू प्रजाति फलती - फूलती रहे........आपके ...
यह दुर्लभ हास्य रचना मेरी नहीं है, बल्कि कहीं से मिली है. यह मुझे इतनी अच्छी लगी कि सोचा क्यों न इसे आप लोगों को भी दिखाऊँ...
कभी - कभी ही ऐसा होता है जब कोई ऐसा मिलता है जिसकी सोच हो अपने जैसी जिसकी बातें हों अपने जैसी जिसके आचार - विचार - संस्कार
We make a living by what we get, but we make a life by what we give.

Monday, March 5, 2012

इस चालाक दुनिया में
''माँ'' के लिए
सिर्फ एक दिन !
बाकी के
तीन सौ चौसठ दिन
माँ कहाँ है ??!!
दूसरों के वहां
झाड़ू-पोंछा-बर्तन
करती हुयी!,
बाप की बोतल के लिए
पैसा जुटाती हुयी !,
गोद में बच्चा
ओर
सर पर
तगारी उठाये हुए
दो वक़्त की रोटी का
जुगाड़ करती हुयी !,
पति से सताई हई......,
बेटों से तिरस्कृत.......,
बहुओं से डरी हुयी......,
शहर से दूर
किसी गाँव में
अपनी जिंदगी के दिन
अभावो,
तन्हाईयों,
में
अपने परिवार के लिए
दुआएं करती
काटती हुयी..''माँ''......!!!
"" ए माँ
इस चालाक दुनिया का
आज के दिन
तुझे सलाम ""-----
‎" AANSu Aur muskurahat ” Do ANMOL Khazaane hain.................. “AANSU” ko sirf ALLAH k saamne bahaao.... Aur “MUSKURAHAT” ko logon par Nichhawar kar do.........................
‎''क्या कभी लौटा है गुजरा हुआ पल ... ना कभी लौटा है वो खोया हुआ प्यार .. बस अहसास होते साथ है हमेशा .. क्योकि वो कभी हमसे दूर जाते ही नहीं .. हा समय के साथ छुप जाते है कही दिल में.. पर रहते हरदम हमारे ही साथ है ....... वक्त का एक लम्हा अचानक छेड़ जाता .. और सोये हुए जज्बात जाग जाते है अक्सर . फिर वही बदल जाते तड़फ में और निकलते आंसू है . पर ये जज्बात और अहसास ही तो हमारी पूंजी है ... सही है वक्त कभी लौट कर नहीं आता मेरे दोस्तों .. पर गुजरे वक्त की ये छाप कभी ना मिटी है.
आज फ़िर उन यादों से मुलाकात हुई, कुछ सुनहरे पलों की याद ताजा आज हुई, टूटे हुए सपनो के यादों की बरसात हुई, दिल की धडकनो मे पुरानी आवाज हुई, याद करने बैठे हम तमाम बीती बातों को, खुदा कसम, गम की यादों से ही शुरुआत हुई ।। .......................
Assalam o Alaikum wa Rahmatullahi wa Barakatuhoo...

Peace be unto you. It is a shortened form of the grand greeting: Assalamu alaikum wa rahmatullahi wa barakatuh (Peace be unto you and so may the mercy of Allah and His blessings). The greeting is recommended to be only used between Muslims.
In reply to this a person may repeat the greeting and say: Assalamu Alaikum; However, it is more fitting to reply: Wa Alaikum Assalam.

و عليكم السلام
When a Muslim is greeted with the word 'salam' or its variants, they should reply Wa Alaikum as-Salam - And upon you be peace.
Be soft and cool
Like Water.
So,
You can adjust anywhere in Life.
Be hard and Attractive
प्राणियों के लिये निर्धनता सब से बड़ा कष्ट और पाप है! क्यूंकि निर्धन को न तो कोई आदर देता, न उसे बात करता और न उसका स्पर्श ही करता है! निर्धन मनुष्य शिव के ही तुल्य क्यूँ न हो, सबके स्वर तिस्कृत होता रहता है! "मुझे कुछ दीजिये" यह वाक्य मुंह से निकलते ही बुद्धि, श्री, लज्जा, शान्ति और कीर्ति --ये शारीर के पांच देवता तुरंत निकल कर चल देते हैं! गुण आर गौरव तभी तक टिके रहते हैनं, जबतक मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाता! जब पुरुष वाचक बन गया, तब कहाँ गुण और कहाँ गौरव ! जीव तभी तक सब से उत्तम, समस्त गुणोंका भण्डार और सब लोगों का वन्दनीय रहता है, जबतक वह दूसरों से याचना नहीं करता!
होली है !
मादकता उल्लास भी ।
रंग हैं सारे...
हास-परिहास भी ।
मिल जुल सब
ख़ुशी में, बह जाते ।
भिन्न भिन्न हैं रंग लगाते।
लाल रंग उल्लास का ...
हरा और पीला
हास परिहास का ।
नीला और गुलाबी
प्रेम सौहार्द का ।
होती है मादकता उल्लास भी ।
शोर भी ,धमाल भी ...
रंग सारे खिलते हैं ।
भेद भाव भूल के ।
होली है !
मादकता उल्लास भी ।।
''गिरती है बारिश धरती के लिए ....
बहती है नदिया समन्दर के लिए ...
खिलते है फूल बहारो के लिए ......
जलता है पतंगा दीप के लिए ...
क्या बुरा जो कोई जीता है किसी के लिए ..
''क्या पता किस गुनाह की सजा मिलती है दीवानों को .. बस गुनाहगार है हम यही साबित हुए है हमेशा से वे , वफ़ा का सिला है ये या है ये उनके इमान का .. बस ये उनके नसीब का एक तोहफा सा है .. यदि ऐसा भी है तो हमें कोई गम नहीं .. इससे किसी को ख़ुशी मिली ये कोई कम तो नहीं . हर कोई कोई तौलता है उसे अपने तराजू में . दीवानों का होता नहीं अपना कोई मन नहीं .... उसे तो बस सहना है और जीना है किसी के लिए .. उसके जज्बातों का सच में कोई मोल नहीं ..

Monday, February 27, 2012

सागर की अपनी क्षमता है
पर माझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो
नाविक निज पतवार-
बदी भी नाम चाहती है इसी लिए बदनाम हो जाती है । होना बहुत जरूरी है और यदि कुछ नहीं होगा तो फसाना नहीं होगा । कोई फसाना न हुआ तो किस्से नहीं होंगे और यदि किस्से न हुए तो कुछ लोग नकारा हो जाएंगे । लोग नकारा हो गए तो TDP गिर जाएगी । TDP गिर गई तो सारा इल्जाम मुहब्बत करने वालों पर आ जाएगी । ऐसे में तो ज़िन्दगी नीरस हो जाएगी ! इस लिए फसाने बनने दो Dhanpat मगर मुहब्बत की राह मत छोड़ो ! मुहब्बत खुदा की इबादत है । तुम तो मुहब्बत बांटो और मुहब्बत का परचम फैराओ ताकि दुनिया आपके मुहब्बत का पैगाम थाम कर खूबसूरत बन जाए !

Thursday, February 23, 2012

मेरे मरने के बाद मेरे दोस्तों,
यूं आँसू कभी मत बहाना,
अगर मेरी याद आए तो,
सीधे उपर चले आना!!
रास्ता ना पता हो तो हमे बताना
हम तुम्हे लेने चले आएँगे
नही होगा तो गाड़ी भिजवाएँगे
तुम चिंता मत करना
अप्सरा का डॅन्स भी दिखवाएँगे
और भगवान से मेरी पूरी सेट्टिंग हैं
तुम्हारे रुके काम भी करवाएँगे
काफ़ी हैं इतना प्रलोभन
कि अभी और कुछ दिखाए....
कुछ और झूठ बोले तुम्हे फसाए
कर रहे हैं खुदा की मार्केट्टिंग
कमिशन तुम्हे भी दिलाए.......
लीवर खराब होने के मुख्य कारण
 देर से सोना और देर से उठना सबसे प्रमुख कारण है
 सुबह उठ कर मूत्र-विसर्जन नहीं करना
 बहुत अधिक खाना
 सुबह का ब्रेकफास्ट नहीं करना
 बहुत ज्यादा दवाई खाना
 preservatives, additives, food coloring,व artificial sweetener युक्त पदार्थों का बहुत अधिक सेवन
 खाना बनाए के लिए अच्छे तेल का इस्तेमाल नहीं करना.तेल का इस्तेमाल कम से कम करें चाहे तेल अच्छा भी क्यों न हो.जब थके हुए हों तब तले हुए पदार्थ न खाएं
 एकदम कच्ची या बहुत अधिक पकी हुई सब्जियां खाना.तली हुई सब्जियों को ताज़ा बनते ही खा लें.उन्हें स्टोर कर के न रखें.
यह सब हम बिना अधिक खर्च के कर सकते हैं.एक अच्छी और स्वस्थ जीवन शैली अपना कर व खाने की अच्छी आदतों से .खाने की अच्छी आदतें और समय का ध्यान हमारे शरीर द्वारा अच्छे केमिकल्स को अवशोषित करने व खराब केमिकल्स से छुटकारा दिलाने में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं.

क्योंकि....
 शाम के ९ बजे से ११ बजे तक--यह समय होता है antibody system (lymph nodes)(रोग-प्रतिकारक तंत्र ) में से हानिकारक रसायनों से मुक्त होने का .... इस समय पर कोई भी यदि आरामदायक स्थिति में नहीं है जैसे कुछ काम में लगा हुआ है तो इसका स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है...
 रात ११ बजे से १ बजे तक-लीवर के detoxification (विषहरण) का समय है व इस समय पर गहरी निद्रा अवस्था में होना चाहिए..

Wednesday, February 22, 2012

आज कल विचार ही नही आते
पता नही कहाँ चले गये हैं
ये मन को नही सहला पाते
कितनी बार सोचती हूँ
कुछ लिखू..लेकिन दिमाग़ साथ नही देता
दिल भी आज कल ....अपना नही रहा....
कोई आवाज़ नही देता...
पहले घूमाड़ते थे विचार..
झड़ी लग जाती थी...
नही होता था काग़ज़ कलम हाथ मे ...
मोबाइल के ड्राफ्ट मे ही नोट कर लेती थी
अब सब कुछ गोल सा हो गया हैं
कुछ नही सूझता....लगता हैं
विचारो ने अपना रास्ता बदल लिया हैं
क्या करे अब आप ही सुझाए
हो कोई नया रास्ता तो हमे भी बताए
हम अपने विचारो के साथ चलना चाहते हैं
साथ मे नया इतिहास भी रचना चाहते हैं
लेकिन जब विचार ही नही होगा मेरे पास
तो कौन देगा मेरा साथ.....
विचारो एक बार फिर आओ.....
मेरा साथ निभाओ...मत करो ऐसा
मैने हमेशा किया तुमपे भरोसा
आ भी जाओ.....मुझसे दूर ना जाओ..
kabhi aapne ,kabhi khud maine ise bahlana chaha
ajeeb shay hai asliyat mei kabhi bahal na paya

na jaane kaun si mitti se bana hai hamara ye 'dil'
lal,peela,katthai ,surmai har rang se ise bemel hi paya

pal bhar ko lagaa sukun mila hai ise
agle pal bechain hii paya maine ye 'dil'...

अजीब शय है ये 'दिल'

कभी आपने ,कभी खुद मैंने इसे बहलाना चाहा
अजीब शय है असलियत में कभी बहल न पाया

न जाने कौन सी मिट्टी से बना है हमारा ये 'दिल'
लाल,पीला,कत्थई,सुरमई हर रंग से इसे बेमेल ही पाया

पल भर को लगा सुकून मिला है इसे
अगले पल बेचैन ही पाया मैंने ये 'दिल' ....
सत्ता में रहने का कितना आनंद होता हैं....क्या नहीं हो सकता अगर सत्ता पास हो तो....ताजा तरीन उधाहरण देखिये......

१. कश्मीर में नेता ने अपने बेटे को नक़ल कराई..जिस से वो पास हो सके.
२. आन्ध्र में मंत्री ने बेटे की शादी के लिए...आखिरी क्षणों में परिक्षा केंद्र ही बदलवा दिया.....क्योकि उन्हे विवाह के लिए स्कूल चाहिए था...परीक्षार्थी अपने भविष्य के बारे में खुद सोचे...
३. पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने अपनी बेटी के परिवार के लिए...छोटे हवाई जहाज A-319 की जगह A-320 चलवा दिया ...अपना राज हो तो क्या फरक पड़ता हैं...
४. युवराज.....को चुनाव प्रचार में कोई परेशानी ना हो....इसलिए चुनाव आयोग की ताकत कम करने का मन बना लिया.........
इसे कहते हैं ..सत्ता की ताकत ..कौन इस से दूर रहना चाहेगा....जो कहता हैं कि वो जनता की सेवा के लिए राजनीती में आता हैं ...वो शायद कुछ छुपा रहा हैं .....
मन अति निर्मल है तुम्हारा
हर अंदाज़ है प्यारा तुम्हारा
फेबु पर साथ मिला तुम्हारा
सुकून देता है साथ तुम्हारा
हिन्दी से प्रेम दिखता तुम्हारा
मित्रो से गहरा नाता तुम्हारा
आज जन्मदिन है तुम्हारा
सुखी रहे सदा जीवन तुम्हारा
शुभकामनाओं पर लिख दिया है नाम तुम्हारा
स्नेह का तौहफा कबूल करे भाई आप हमारा
शाम उदास थी निशब्द थमी सी वैसे ही

जैसे जिंदगी आके किसी मोड़ पे थम गई हो

एक मोती चुपके से सीप में आके बैठ गया

जैसे रूठा हुआ अपना कोई छिप गया ओट में कहीं

लोग समंदर खगालाते रहे मोती की तलाश में

और वो सीप तले बैठा मुस्कुराता रहा

सोचता रहा की येही तो जीवन है

कभी धूप कभी छाव कभी आँख मिचोली

कुछ पाने की जद्दोजहद संग झूझता हर इंसान

Wednesday, February 8, 2012

aye Mere khuda meri ek duaa kabul karana..
mere doston ke chehre pe hasi ataa farma..
bhale chand ranj-o-gam meri jholi me daal de..
mere chahne walo ki har duaa sunna...
s
जाओ जहाँ जाना है, अब तुम्हारी जरूरत नहीं
ये शब्द पारे सा पिघला गए उसके अंतर्मन को
यह घर जो घरोंदा था उसके बनाए ख्वाबों का
बनाया था जिसे अपने परिश्रम और त्याग से
यह घर, बच्चे, पति यहीं तो जिंदगी थे उसकी
इनके इर्द गिर्द ही तो बुना था ताना बाना उसने
सींचा था जिसे उसने स्नेह और अपनी निष्ठा से
आज एक ही पल में कैसे हो गया सब बेगाना
शायद सम्बन्ध सभी जरुरत की बलि चढ़ गए
जरुरत ख़त्म होते ही गिरा दिया नज़रो से अपनी
और सवाल करने का हक आज भी नहीं दिया
हक - वो तो बहुत पहले ही छीन चुका था उससे
जब कुंती ने कर्ण को लोकलाज कि खातिर त्यागा
सीता ने दी अग्नि परीक्षा और धरती में समाई वो
जयकार आई राम के हिस्से में, तब भी रही अनजान वो
उर्मिला बन लक्ष्मण की, विरह वेदना का दंश सहा उसने
द्रोपदी बन चोसर की बिसात पर नग्न हुई थी वो
अब तक तो अभ्यस्त हो जाना चाहिए था उसे
सवाल करने की तड़प से क्यों आज है व्यथित वो
जरुरत तक ही सीमित है अस्तित्व उसका
बात ये अब तक क्यों समझ ना पाई वो..

Tuesday, January 24, 2012


रटी-रटाई प्रार्थना, सुना-सुनाया ज्ञान
बोर किया भगवान को, कैसे हो उत्थान ..
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन!

काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन।
बीती रात, अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन।
सुखमय हो सबका जीवन!

आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना।
मुस्काएगा यह जीवन।

कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन।
जल में ,थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन।
दमक उठा हर घर-आँगन।
जब तुमसे मिला मैं तो तुम खुशगवार झोंके सी लगी,
तुम्हारी वो भोली सी हंसी वो ख़ुशी भली लगी,
तुम साथ चली हमकदम बन साथ तुम्हारा भला लगा,
हाथो में हाथ तुम्हारा रुई के फोहे सा प्यारा लगा,
खुश था बहुत पाकर तुम्हे जैसे पा लिया सब जीवन में,
फिर अचानक तुम जाने क्यों हो गई खफा मुझसे,
अब तुम नाराज़ हो बिना बताये कि नाराज़गी की वजह क्या है,
तो आज तुम्हारी यह नाराज़गी यह निगाह के सवाल भी भले से लगे,
वजह मत पूछो की क्यों हर बात तुम्हारी लगती मुझे भली सी है,
शायद बता भी न सकू कि ऐसा क्यों है मुझे भी नहीं पता वजह क्या है,
हाँ तुम्हारी वजह पूछने की हर वजह भली सी लगी,
आज फिर तुम मुझे उसी खुशगवार झोंके सी लगी.........

Saturday, January 21, 2012



प्रीति कविता ज़िन्दगी की गर्विता रानी नही है
मूक भाषा प्रीति की, कुछ बोलती बानी नहीँ है
प्रीति कह सकते किसी उन्मुक्त सी उठती लहर को
बाँध लो जिसको तटोँ मे प्रीति वह पानी नही है। ...

शुभ संध्या मित्रो..................
ठोकरे खा के ही इंसा संभलता है,
और अपने वजूद में ढलता है,
जो गिरकर संभल न पाए वो इंसा ही क्या,
चीटी को भी गिर गिरके ही मुकाम मिलता है..

तुम्ही तो हो प्रिय मेरे जीवन के आधार स्तंभ,
हाँ तुम्ही हो जिसने दिया धड्कनो को स्पंदन,
तुम्ही हो मेरे इस जीवन के बिंदु आधार,
तुम्हारे ही प्यार में छिपा इस जीवन का सार,
आज देती हूँ शुभकामनाये जन्मदिन पर तुम्हारे,
तुम्हारे प्रेम के सागर में डूब के ही तो मिले किनारे,
जीवन पथ पर इसी तरह देना तुम मेरा साथ,
है परमेश्वर से दुआ यहीं छूटे कभी न हमारे हाथ,
जन्मदिन तुम्हारा हम कुछ ऐसे मनाये,
केक तुम काटो और मिल बांटकर हम खाए......

Friday, January 20, 2012


यह मनुष्य योनी हमे क्यों मिली है ?यह मनुष्य योनी मात्र सुख:दुःख भोगने के लिए नहीं मिली, अपितु सुख:दुःख से ऊँचा उठकर, माहन आनंद और परमशान्ति की प्राप्ति के लिए मिली है. सिर्फ सुख:दुःख की अनुभूति में ही उलझे रहे तो मुक्ति के पात्र कैसे होंगे?प्रतिकूल परिस्थिओं में सारा धर्य समाप्त हो जाता है.इस जीवन क्रम में यह सब तो चलता रहेगा. लेकिन स्थिर तुम्हारे मन को होना है. इसलिए अपने विवेक को जागृत करो. कर्म करो लेकिन भगवान को न भूलो. अज्ञान का अँधेरा तुम्हारे लिए नहीं है. भटकने की प्रवृति तुम्हारे लिए नहीं है. तुम्हारे भीतर रमण करती उस आत्मा से एक बार अपना परिचय पुछो. प्रश्न का उत्तर न मिले तो अपने गुरु के पास जाओ. तुम्हारा आत्मकल्याण होगा.याद रखो संसार को हम एक ही बार देख सकते हैं. दूसरी बार नहीं, क्योंकि संसार परिवर्तनशील है. जो वस्तु कुछ छन तक पहले जैसी थी, कुछ छान बाद वैसी नहीं रहेगी. बदलाव संसार का नियम है, इसलिए यंहा सम्बन्ध भी स्थिर नहीं रहते. वह भी बदल जाते हैं. इसलिए प्रीति करो तो उससे जो कभी नहीं बदलता. सदा-सर्वदा- सर्वत्र स्थिर रहता है और ऐसी परमशक्ति परमात्मा के अतिरिक्त अयन्त्र कंही भी नहीं है. वही एकमात्र सत्य है.परमात्मा को कितना ही अस्वीकार करे, कितनी ही उपेक्षा करे, युक्तिओं से कितना ही खंडन करे, फिर भी उसकी सत्ता का कभी आभाव नहीं होता. वह सैदेव विधमान रहती है, क्योंकि वही सत्य है. जबकि संसार में सर्वत्र असत्य ही है. इसलिए संसार में सैदेव आभाव रहा और परमात्मा में भाव ही रहा.

jindgi ka falsafaa hum, kyu samajh nahi paye..
kya hoti hai jindgi, koi hume bhi to samjhaye...
bhula bisra geet koi, ya dhun hai woh meera ki..
koi kahe allah ki nehmat, ya chaupai hai geeta ki...
na koi jana na koi samjha, yeh ek aisi paheli hai...
kabhi lage raavan si dushman, kabhi yeh sacchi saheli hai..

शुभ संध्या मित्रो..................
ठोकरे खा के ही इंसा संभलता है,
और अपने वजूद में ढलता है,
जो गिरकर संभल न पाए वो इंसा ही क्या,
चीटी को भी गिर गिरके ही मुकाम मिलता है....

रुके आँसू, दबी चीखें, बंधी मुट्ठी, भिंचे जबड़े
-इन्हीं के तर्जुमे से मुल्क़ में विस्फोट होता है
ये बम रखने का काम अच्छा-बुरा औरों की ख़ातिर है
ग़रीबी के लिए तो सिर्फ़ सौ का नोट होता है ...

‎"Successful People Can't Relax In Chairs…They Relax In Work. They Sleep With A Dream, Awake With Commitment & Work Towards GOAL..." ...

फैली खेतों में दूर तलक
मख़मल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।

रोमांचित-सी लगती वसुधा
आयी जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध,

फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली।
रँग रँग के फूलों में रिलमिल

Thursday, January 19, 2012


चिराग थे महफ़िलें थीं दोस्त हज़ार थे
खवाब थे बेखुदी थी जाम थे खुमार थे
अपने ही घर में अजनबी हैं हम के जो
कभी शहर में रौनक के अलमबरदार थे ...

कुछ तो आगे इस गली के मोड़ पर आने को है
डर न, ऐ दिल! आज कोई हमसफ़र आने को है

फिर उतरने लग गयीं यादों की वे परछाइयाँ
दिल का सोया दर्द जैसे फिर उभर आने को है

फ़िक्र क्या तुझको कहाँ तक जाएगा यह कारवाँ
बाँध ले बिस्तर, मुसाफिर! तेरा घर आने को है

यह तो बतलाओ कि पहचानेंगे कैसे हम तुम्हें
लौट कर यह कारवाँ फिर भी अगर आने को है!

यह किनारा फिर कहाँ, ये साँझ, ये रंगीनियाँ
नाव यह माना कि फिर इस घाट पर आने को है

जब निगाहें मोड़कर जाते हैं दुनिया से गुलाब
कोई लाया है ख़बर, - 'वह बेख़बर आने को है'

हर लम्हा ज़िंदगी का एक कोरा सफहा है,
कूची ख्वाहिशों की लेकर तुम इसमें रंग भर लो ।

लेकर सुबह से सिंदूरी लाल,
आकृति नये जीवन की बनाना ।
फिर ले प्रणयी बासंती पीला,
नित नये तुम स्वप्न सजाना ।

मेहंदी से लेकर हरा रंग,
अपना सुंदर संसार रचाना ।
और ले विराट अम्बर से उसका रंग,
स्वयं को उसके साथ उठाना ।

फिर शुभ्र एक किनारी देकर,
नई उमंग की ज्योत जगाना ।
देना श्याम छोड़ निशा पर,
उसे है केवल हमें निभाना ।

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।